GK - जैन धर्म


  1. जैन धर्म के संस्थापक एवं प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव थे।
  2. जैनधर्म के 23वे तीर्थकर पार्श्वनाथ थे जो काशी के इक्ष्वाकु वंशीय राजा अश्वमेघ के पुत्र थे।  इन्होने 30 वर्ष की अवस्था में सन्यास – जीवन को स्वीकारा इनके व्दारा दी गयी शिक्षा थी -  1 हिंसा न करना , 2 सदा सच बोलना, 3 चोरी न करना तथा  4 सम्पति न रखना ।
  3. महावीर स्वामी जैन धर्म के 24वे एवं अंतिम तीर्थकर हुए ।
  4. महावीर स्वामी का जन्म 540 ईसा पूर्व में कुण्डग्राम (वैशाली) में हुआ था। इनके पिता सिध्दार्थ ‘ज्ञातक कुल’ के सरदार थे और माता त्रिशला लिच्छवी राजा चेटक की बहन थी ।
  5. महवीर की पत्नी का नाम यशोदा एवं पुत्री का नाम अनोज्जा प्रियदर्शनी था ।
  6. महावीर के बचपन का नाम वर्धमान था। इन्होने 30 वर्ष की उम्र में माता पिता की मृत्यु के पश्चात् अपने बड़े भाई नन्दिवर्धन से अनुमति लेकर सन्यास – जीवन को स्वीकार था ।
  7. 12 वर्षो की कठिन तपस्या के बाद महावीर को ज्रम्भिक के समीप ऋजुपालिका नदी के तट पर साल वृक्ष के नीचे तपस्या करते हुए सम्पूर्ण ज्ञान का बोध हुआ। इसी समय से महावीर जिन (विजेता), अर्हत (पूज्य) और निर्ग्रन्थ (बंधनहीन) कहलाए ।
  8. महावीर ने अपना उपदेश प्राकृत (अर्धमागधी) भाषा में दिया।
  9. महावीर के अनुयायियों को मूलतः निग्रंथ कहा जाता था ।
  10. महावीर के प्रथम अनुयायी उनके दामाद (प्रियदर्शनी के पति) जामिल बने।
  11. प्रथम जैन भिक्षुणी नरेश दधिवाहन की पुत्री चंपा थी ।
  12. महावीर ने अपने शिष्यों को 11 गणधरो में विभाजित किया था ।
  13. आर्य सुधर्मा अकेला ऐसा गंधर्व था, जो महावीर की मृत्यु के बाद भी जीवित रहा और जो जैन धर्म का प्रथम थेरा या मुख्य उपदेशक हुआ ।
  14. दो जैन तीर्थकरो ऋषभदेव एवं अरिष्टनेमी के नामो का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है। अरिष्टनेमी को भगवान कृष्ण का निकट संबंधी माना जाता है।
  15. लगभग 300 ईसा पूर्व में मगध में 12 वर्षो का भीषण अकाल पड़ा, जिसके कारण भाद्रभाहू अपने शिष्यों सहित कर्नाटक चले गए, किन्तु कुछ अनुयायी स्थूलभद्र के साथ मगध में ही रुक गए । भद्रबहु के वापस लौटने पर मगध के साधुओ से उनका गहरा मतभेद हो गया, जिसके परिणाम स्वरुप जैन मत श्वेताम्बर एवं दिगंबर नामक दो सम्प्रदायों में बंट गया।  स्थूलभद्र के शिष्य श्वेताम्बर – (श्वेत वस्त्र धारण करने वाले) एवं भद्रबहु के शिष्य दिगंबर (नग्न रहने वाले) कहलाए ।
  16. जैन धर्म के त्रिरत्न है – सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान और सम्यक आचरण।
  17. त्रिरत्न के अनुशीलन में निम्न पांच महाव्रतो का पालन अनिवार्य है – अहिंसा, सत्य वचन, अस्तेय, अपिग्रह एवं ब्रम्हचर्य ।
  18. जैनधर्म में ईश्वर की मान्यता नही है ।
  19. जैन धर्म में आत्मा की मान्यता है ।
  20. महावीर पुनर्जन्म एवं कर्मवाद में विश्वास करते थे ।
  21. जैन धर्म के सप्तभंगी ज्ञान के अन्य नाम स्यादवाद और अनेकांतबाद है।
  22. जैनधर्म ने अपने आध्यात्मिक विचारो को सांख्य दर्शन से ग्रहण किया ।
  23. जैनधर्म मानने वाले कुछ राजा थे – उदयिन, वंदराजा, चन्द्रगुप्त मौर्य, कलिग नरेश खारवेल, राष्ट्रकूट राजा अमोघवर्ष चंदेलशासक ।
  24. मैसूर के गंग वंश के मंत्री, चामुण्ड के प्रोत्साहन से कर्नाटक के श्रवणबेलगोला में 10वी शताब्दी के मध्य भाग में विशाल बाहुबली की मूर्ती (गोमतेश्वर की मूर्ती ) का निर्माण किया गया।
  25. खजुराहो मे जैन मंदिरो का निर्माण चंदेल शासको व्दारा किया गया ।
  26. मौर्योत्तर युग में मथुरा जैन धर्म का प्रसिद्ध केंद्र था मथुरा कला का संबंध जैन धर्म से है ।
  27. जैन तीर्थकरो की जीवनी भद्रबाहु व्दारा रचित कल्पसूत्र में है।
  28. 72 वर्ष की आयु में महावीर की मृत्यु (निर्वाण) 468 ईसा पूर्व में बिहार राज्य के पावापुरी (राजगीर) में ही गई ।
  29. मल्लराजा स्रस्तिपाल के राजप्रसाद में महावीर स्वामी को निर्वाण प्राप्त हुआ था ।

Search This Blog