प्राचीन भारतीय इतिहास के स्त्रोत
प्राचीन भारतीय इतिहास के विषय में जानकारी मुख्यतः चार स्त्रोतों से प्राप्त होती है -
1. धर्मग्रन्थ
2. ऐतिहासिक
3. विदेशियों का विवरण
4. पुरातत्व - संबंधी साक्ष्य
धर्मग्रंथ एवं ऐतिहासिक ग्रंथ से मिलने वाली महत्वपूर्ण जानकारी
भारत का सर्वप्राचीन धर्मग्रंथ वेद है, जिसके संकलनकर्ता महर्षि कृष्ण व्दौपायन वेदव्यास को माना जाता है वेद बसुध्दैव कुटुम्बकम् का उपदेश देता है भारतीय परम्परा वेदों को नित्य तथा अपौरुषय मानती है
वेद चार है -
1.ऋग्वेद
2. यजुर्वेद
3.सामवेद
4.अथर्ववेद
इन चार वेदों को संहिता कहा जाता है
ऋग्वेद
ऋचाओ के क्रमबध्द ज्ञान के संग्रह को ऋग्वेद कहा जाता है इसमें 10 मंडल, 1028 सूक्त (वालखिल्य पाठ के 11 सूक्तो सहित ) एवं 10,462 ऋचाए है इस वेद के आर्य के राजनीतिक प्रणाली एवं इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है
विश्वामित्र व्दारा रचित ऋग्वेद के तीसरे मंडल में सूर्य देवता सावित्री को समर्पित प्रसिद्ध गायत्री मंत्र है इसके 9वे मंडल में देवता सोम का उल्लेख है
इसके 8 वे मंडल की हस्तलिखित ऋचाओ को खिल कहा जाता है
चातुष्व- समाज की कल्पना का आदि स्त्रोत ऋग्वेद के 10 वे मंडल में वर्णित पुरुषसूक्त है, जिसके अनुशार चार वर्ण (ब्राम्हण, क्षत्रीय वैश्य तथा शूद्र ) आदि पुरुष ब्रम्हा के क्रमशः मुख, भुजाओ, जंघाओ और चरणों से उत्पन्न हुए
नोट - धर्मसूत्र चार प्रमुख जातियों की स्थितियों, व्यवसायों, दायित्वों, कर्तव्यो तथा विशेषाधिकारो में स्पष्ट विभेद करता है
नोट - धर्मसूत्र चार प्रमुख जातियों की स्थितियों, व्यवसायों, दायित्वों, कर्तव्यो तथा विशेषाधिकारो में स्पष्ट विभेद करता है
ईसा पूर्व एवं ईसवी
वर्तमान में प्रचलित ग्रेगोरियन कैलेंडर (ईसाई कैलेंडर/जूलियन कैलेंडर) ईसाई धर्मगुरु ईसा मसीह के वर्ष (कल्पित ) पर आधारित है ईसा मसीह के जन्म के पहले के समय को ईसा पूर्व (B.C. - Before the birth of Jesus Christ ) कहा जाता है ईसा पूर्व में वर्षो की गिनती उल्टी दिशा में होती है, जैसे महात्मा बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व में एवं मृत्यु 483 ईसा पूर्व में हुआ यानी ईसा मसीह के जन्म के 563 वर्ष पूर्व महात्मा बुद्ध का जन्म एवं 483 वर्ष पूर्व मृत्यु हुई
ईसा मसीह की जन्म - तिथि से आरंभ हुआ सन, ईसवी सन कहलाता है, इसके लिए संक्षेप में ई. लिखा जाता है ई. को लैटिन भाषा के शब्द A.D. में भी लिखा जाता है A.D. यानी Anno Domini जिसका शाब्दिक अर्थ है - In The Year of Lord (Jesus Christ)
वामनावतार के तीनो पगों के आख्यान का प्राचीनतम स्त्रोत ऋग्वेद है
ऋग्वेद में इन्द्र के लिए 250 तथा अग्नि के लिए 200 ऋचाओ की रचना की गयी है
नोट - प्राचीन इतिहास के साधन के रूप में वैदिक साहित्य में ऋग्वेद के बाद शतपथ ब्राम्हण का स्थान है
यजुर्वेद
सस्वर पाठ के लिए मंत्रो तथा बलि के समय अनुपालन के लिए नियमो का संकलन यजुर्वेद कहलाता है इसके पाठकर्ता को अध्वर्यु कहते है
यजुर्वेद में यज्ञो के नियमो एवं विधि विधानो का संकलन मिलता है
यह एक ऐसा वेद है जो गद्या एवं पद्या दोनों में है
सामवेद
'साम' का शाब्दिक अर्थ है गान इस वेद में मुख्यतः यज्ञो के अवसर पर गाये जाने वाले ऋचाओ (मंत्रो) का संकलन है इसके पाठकर्ता को कहते है
इसे भारतीय संगीत का जनक कहा जाता है
नोट - यजुर्वेद तथा सामवेद में किसी भी विशिष्ट ऐतिहासिक घटना का वर्णन नही मिलता है
अथर्व वेद
अथर्वा ऋषि व्दारा रचित इस वेद में कुल 731 मंत्र तथा लगभग 6000 पद्या है इसके कुछ मंत्र ऋग्वैदिक मंत्रो से भी प्राचीनतर है अथर्ववेद कन्याओ के जन्म की निंदा करता है
ऐतिहासिक द्रष्टि से अथर्व वेद का महत्व इस बात में है कि इसमें सामान्य मनुष्यों के विचारो तथा अंधविश्वासों का विवरण मिलता है
पृथिवीसूक्त अधर्ववेद का प्रतिनिधि सूक्त माना जाता है इसमें मानव जीवन के सभी पक्षों - गृह निर्माण, कृषि की उन्नति, व्यापारिक मार्गो का गाहन (खोज), रोग निवारण, समन्वय, विवाह तथा प्रणय गीतों, राजभक्ति, राजा का चुनाव, बहुत से वनस्पतियों एवं औषधियो, शाप, वशीकरण, प्रायश्चित, महात्मय आदि का विवरण दिया गया है कुछ मंत्रो में जादू - टोने का भी वर्णन है
अथर्व वेद में परीक्षित को कुरूओ का राजा कहा गया है तथा कुरु देश की सम्रध्दी का अच्छा चित्रण मिलता है
इसमें सभा एवं समिति को प्रजापति की दो पुत्रियाँ कहा गया है
नोट - सबसे प्राचीन वेद ऋग्वेद एवं सबसे बाद का वेद अथर्व वेद है
वेदों को भली - भांति समझने के लिए छह वेदांगो की रचना हुई ये है - शिक्षा, ज्योतिष, कल्प, व्याकरण, निरुक्त तथा छंद
भारतीय ऐतिहासिक कथाओ का सबसे अच्छा क्रमबध्द विवरण पुराणों में मिलता है इसके रचयिता लोमहर्ष अथवा इनके पुत्र उग्रश्रवा माने जाते है इनकी संख्या 18 है, जिनमे से केवल पांच - मत्स्य, वायु, विष्णु, ब्राम्हण एवं भगवत में ही राजाओ की वंशावली पायी जाती है
नोट - पुराणों में मत्स्य पुराण सरल संस्कृत श्कोक में लिखे गये है स्त्रियाँ तथा शूद्र जिन्हें वेद पढने की अनुमति नही थी, वे भी पुराण सुन सकते थे पुराणों का पाठ पुजारी मंदिरों में किया करते थे
स्त्री की सर्वाधिक गिरी हुई स्थिति मैत्रेयनी संहिता से प्राप्त होती है जिसमे जुआ और शराब की भांति स्त्री को पुरुष का तीसरा मुख्य दोष बताया गया है
शतपथ ब्राम्हण में स्त्री को पुरुष का अर्धांगिनी कहा गया है
स्मृतिग्रंथो में सबसे प्राचीन एवं प्रमाणिक मनुस्मृति मानी जाती है यह शुंग काल का मानक ग्रंथ है नारद स्मृति गुप्त युग के विषय में जानकारी प्रदान करता है
जातक में बुध्द की पूर्वजन्म की कहानी वर्णित है हीनयान का प्रमुख ग्रंथ 'कथावस्तु' है, जिसमे महात्मा बुध्द का जीवन - चरित अनेक कथानको के साथ वर्णित है
जैन साहित्य को आगम कहा जाता है जैन धर्म का प्रारंभिक इतिहास 'कल्पसूत्र' से ज्ञात होता है जैन ग्रंथ भगवती सूत्र में महावीर के जीवन - कृत्यों तथा अन्य समकलिको के साथ उनके संबंधो का विवरण मिलता है
अर्थशास्त्र के लेखक चाणक्य ( कोटिल्य या विष्णु गुप्त ) है यह 15 अधिकरणों एवं 180 प्रकरणों में विभाजित है इसमें मौर्यकालीन इतिहास की जानकारी प्राप्त होती है
संस्कृत साहित्य में ऐतिहासिक घटनाओ को क्रमबध्द लिखने का सर्वप्रथम प्रयास कल्हण के व्दारा किया गया कल्हण व्दारा रचित पुस्तक राजतरंगिनी है, जिसका संबंध कश्मीर के इतिहास से है
अरबो की सिंध - विजय का व्रतांत चचनामा (लेखक - अली अहमद ) में सुरक्षित है
'अष्टाध्यायी ' ( संस्कृत भाषा व्याकरण की प्रथम पुस्तक ) के लेखक पाणिनि है इससे मौर्य के पहले का इतिहास तथा मौर्ययुगीन राजनीतिक अवस्था की जानकारी प्राप्त होती है
कत्यायन की गार्गी - संहिता एक ज्योतिष ग्रंथ है, फिर भी इसमें भारत पर होने वाले यवन आक्रमण का उल्लेख मिलता है पतंजलि शुंग के पुरोहित थे, इनके महाभाष्य से शुंगो के इतिहास का पता चलता है
विदेशी यात्रियों से मिलनेवाली प्रमुख जानकारी
A. यूनानी - रोमन लेखक
1. टेसियस : यह ईरान का राजवैध्य था भारत के संबंध में इसका विवरण आश्चर्यजनक कहानियों से परिपूर्ण होने के कारण अविश्वसनीय है
2. हेरोडोटस : इसे 'इतिहास का पिता" कहा जाता है इसने अपनी पुस्तक हिस्टोरिका में 5वी शताब्दी ईसा पूर्व के भारत - फारस (ईरान ) के संबंध का वर्णन किया है परन्तु इसका विवरण भी अनुश्रुतियो एवं अफवाहो पर आधारित है
3. सिकंदर के साथ आनेवाले लेखको में निर्याकस, आनेसिक्रिट्स तथा आस्टोबुलस के विवरण अधिक प्रमाणिक एवं विश्वसनीय है
4. मेगास्थनीज : यह सेल्यूकस निकेटर का राजदूत था, जो चन्द्रगुप्त मौर्य के राजदरबार में आया था इसने अपनी पुस्तक इण्डिका में मौर्य युगीन समाज एवं संस्कृति के विषय में लिखा है
5. डाइमेकस : यह सीरियन नरेश आन्तियोकस का राजदूत था, जो बिन्दुसार के राजदरबार में आया था इसका विवरण भी मौर्य युग से संबंधित है
6.डायोनिसीयस : यह मिश्र नरेश टॉलमी फिलेडेल्फस का राजदूत था, जो अशोक के दरबार में आया था
7. टॉलमी : इसने दूसरी शताब्दी में ' भारत का भूगोल ' नामक पुस्तक लिखी
8. प्लिनी : इसने प्रथम शताब्दी में नेचुरल हिस्ट्री ' नामक पुस्तक लिखी इसमें भारतीय पशुओ, पेड़ - पौधो, खनिज - पदार्थो आदि के बारे में विवरण मिलता है
9. पेरीप्लस ऑफ़ द इरिथ्रयन - सी : इस पुस्तक के लेखक के बारे में जानकारी नही है यह लेखक करीब 80 ई. में हिन्द महासागर की यात्रा पर आया था इसने उस समय के भारत के बन्दरगाहो तथा व्यापारिक वस्तुओ के बारे में जानकारी दी है
B. चीनी लेखक
1. फाहियान : यह चीनी यात्री गुप्त नरेश चन्द्रगुप्त व्दितीय के दरबार में आया था इसने अपने विवरण में मध्यप्रदेश के समाज एवं संस्कृति के बारे में वर्णन किया है इसने मध्यप्रदेश की जनता को सुखी एवं सम्रध्द बताया है यह 14 वर्षो तक भारत में रहा
2. संयुगन : यह 518 ई. में भारत आया इसने अपने तीन वर्षो की यात्रा में बौध्द धर्म की प्राप्तियाँ एकत्रित की
3.ह्रेनसांग : यह हर्षवर्धन के शासनकाल में भारत आया था ह्रेनसांग 629 ई. में चीन से भारतवर्ष के लिए प्रस्थान किया और लगभग एक वर्ष की यात्रा के बाद सर्वप्रथम वह भारतीय राज्य कपिशा पहुंचा भारत में 15 वर्षो तक ठहरकर 645 ई. में चीन लौट गया वह बिहार में नालंदा जिला स्थित नालंदा विश्वविद्यालय में अध्ययन करने तथा भारत से बौध्द ग्रंथो को एकत्र कर ले जाने के लिए आया था इसका भ्रमण व्रतांत सि - यू - की नाम से प्रसिध्द है, जिसमे 138 देशो का विवरण मिलता है इसने हर्षकालीन समाज, धर्म तथा राजनीति के बारे में वर्णन किया है इसके अनुशार सिन्ध का राजा शूद्र था ह्रेनसांग ने बुध्द की प्रतिमा के साथ - साथ सूर्य और शिव की प्रतिमाओ का भी पूजन किया था
नोट - ह्रेनसांग के अध्ययन के समय नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य शीलभद्र थे यह विश्वविद्यालय बौध्द दर्शन के लिए प्रसिद्ध था
4.इत्सिंग : यह 7वी शताब्दी के अंत में भारत आया इसने अपने विवरण में नालंदा विश्वविद्यालय तथा अपने समय के भारत का वर्णन किया है
C. अरबी लेखक
1. अलबरूनी : यह महबूब गजनवी के साथ भारत आया था अरबी में लिखी गई उसकी कृति 'किताब-उल-हिन्द' या तहकीक-ए-हिन्द (भारत की खोज )',आज भी इतिहासकारों के लिए एक महत्वपूर्ण स्त्रोत है यह एक विस्तृत ग्रंथ है जो धर्म और दर्शन, त्यौहारो, खगोल विज्ञान आदि विषयों के आधार पर अस्सी अध्यायों में विभाजित है इसमें राजदूत - कालीन समाज, धर्म, रीति - रिवाज, राजनीति आदि पर सुंदर प्रकाश डाला गया है
2. इब्न बतूता : इसके व्दारा अरबी भाषा में लिखा गया उसका यात्रा - व्रतांत जिसे रिह्रला कहा गया जाता है, 14 वी शताब्दी में भारतीय उपमहव्दीप के सामाजिक तथा सांस्कृतिक जीवन के विषय में बहुत ही प्रचुर तथा सबसे रोचक जानकारियाँ देता है 1333 ई. मर दिल्ली पहुँचने पर इसकी विव्दता से प्रभावित होकर सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक ने उसे दिल्ली का काजी या न्यायधीश नियुक्त किया
D. अन्य लेखक
1. तारानाथ : यह एक तिब्बती लेखक था इसने 'कंग्युर' तथा 'तंग्युर' नामक ग्रंथ की रचना की इनसे भारतीय इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है
2. मर्कोपोलो : यह 13वी शताब्दी के अन्त में पाण्ड्य देश की यात्रा पर आया था इसका विवरण पाण्ड्य इतिहास के अध्ययन के लिए उपयोगी है
पुरातत्व संबंधी साक्ष्य से मिलने वाली जानकारी
1400 ईसा पूर्व के अभिलेख 'बेगाज - कोई' (एशिया माइनर) से वैदिक देवता मित्र, वरुण, इंद्र और नासत्य (अश्विनी कुमार) के नाम मिलते है
मध्यभारत में भागवत धर्म विकसित होने का प्रमाण यवन राजदूत 'होलियोड़ोरस' के वेसनगर (विदिशा) गरुड़ स्तम्भ लेख से प्राप्त होता है
सर्वप्रथम 'भारतवर्ष' का जिक्र हाथीगुम्फा अभिलेख में है
सर्वप्रथम दुर्भिक्ष का जानकारी देनेवाला अभिलेख सौहगौरा अभिलेख है इस अभिलेख में संकट काल में उपयोग हेतु खाद्यान सुरक्षित रखने का भी उल्लेख है
सर्वप्रथम भारत पर होनेवाले ह्रूण आक्रमण की जानकारी भीतरी स्तंभ लेख से प्राप्त होती है
सती प्रथा का पहला लिखित साक्ष्य एरण अभिलेख (शासक भानुगुप्त ) से प्राप्त होती है
सातवाहन राजाओ का पूरा इतिहास उनके अभिलेखों के आधार पर लिखा गया है
रेशम बुनकर की श्रेणियों की जानकारी मंदसौर अभिलेख से प्राप्त होती है
कश्मीरी नवपाषाणिक पुरास्थल बुर्जहोम से गर्तावास (गड्डा घर ) का साक्ष्य मिला है इनमे उतरने के लिए सीढिया होती थी
प्राचीनतम सिक्को को आहत सिक्के कहा जाता है, इसी की साहित्य में कशार्पण कहा गया है
सर्वपप्रथम सिक्को पर लेख लिखने का कार्य यवन शासको ने किया
समुद्रगुप्त की वीणा बजाती हुई मुद्रा वाले सिक्के से उसके संगीत - प्रेमी होने का प्रमाण मिलता है
अरिकमेडू (पुदुचेरी के निकट ) से रोमन सिक्के प्राप्त हुए है
उत्तर भारत के मंदिरों की कला की शैली नागर शैली एवं दक्षिण भारत के मंदिरों की कला द्रविड़ शैली कहलाती है दक्षिणापथ के मंदिरों के निर्माण में नागर और द्रविड़ शैलियों का प्रभाव पड़ा, अत: यह वेसर शैली कहलाती है
पंचायत शब्द मंदिर रचना शैली से संबंधित है एक हिन्दू मंदिर तब पंचायत शैली का कहलाता है जब मुख्य मंदिर चार सहायक मंदिरों से घिरा होता है पंचायत मंदिर के उदाहरण है - कंदरिया महादेव मंदिर (खजुराहो ), ब्रम्हेश्वर मंदिर (भुवनेश्वर ), लक्ष्मण मंदिर (खजुराहो), लिंगराज मंदिर (भुवनेश्वर), दशावतार मंदिर (देवगढ़, उ.प्र. ), गोंडेश्वर मंदिर (महाराष्ट्र )
वामनावतार के तीनो पगों के आख्यान का प्राचीनतम स्त्रोत ऋग्वेद है
ऋग्वेद में इन्द्र के लिए 250 तथा अग्नि के लिए 200 ऋचाओ की रचना की गयी है
नोट - प्राचीन इतिहास के साधन के रूप में वैदिक साहित्य में ऋग्वेद के बाद शतपथ ब्राम्हण का स्थान है
यजुर्वेद
सस्वर पाठ के लिए मंत्रो तथा बलि के समय अनुपालन के लिए नियमो का संकलन यजुर्वेद कहलाता है इसके पाठकर्ता को अध्वर्यु कहते है
यजुर्वेद में यज्ञो के नियमो एवं विधि विधानो का संकलन मिलता है
यह एक ऐसा वेद है जो गद्या एवं पद्या दोनों में है
सामवेद
'साम' का शाब्दिक अर्थ है गान इस वेद में मुख्यतः यज्ञो के अवसर पर गाये जाने वाले ऋचाओ (मंत्रो) का संकलन है इसके पाठकर्ता को कहते है
इसे भारतीय संगीत का जनक कहा जाता है
नोट - यजुर्वेद तथा सामवेद में किसी भी विशिष्ट ऐतिहासिक घटना का वर्णन नही मिलता है
अथर्व वेद
अथर्वा ऋषि व्दारा रचित इस वेद में कुल 731 मंत्र तथा लगभग 6000 पद्या है इसके कुछ मंत्र ऋग्वैदिक मंत्रो से भी प्राचीनतर है अथर्ववेद कन्याओ के जन्म की निंदा करता है
ऐतिहासिक द्रष्टि से अथर्व वेद का महत्व इस बात में है कि इसमें सामान्य मनुष्यों के विचारो तथा अंधविश्वासों का विवरण मिलता है
पृथिवीसूक्त अधर्ववेद का प्रतिनिधि सूक्त माना जाता है इसमें मानव जीवन के सभी पक्षों - गृह निर्माण, कृषि की उन्नति, व्यापारिक मार्गो का गाहन (खोज), रोग निवारण, समन्वय, विवाह तथा प्रणय गीतों, राजभक्ति, राजा का चुनाव, बहुत से वनस्पतियों एवं औषधियो, शाप, वशीकरण, प्रायश्चित, महात्मय आदि का विवरण दिया गया है कुछ मंत्रो में जादू - टोने का भी वर्णन है
अथर्व वेद में परीक्षित को कुरूओ का राजा कहा गया है तथा कुरु देश की सम्रध्दी का अच्छा चित्रण मिलता है
इसमें सभा एवं समिति को प्रजापति की दो पुत्रियाँ कहा गया है
नोट - सबसे प्राचीन वेद ऋग्वेद एवं सबसे बाद का वेद अथर्व वेद है
वेदों को भली - भांति समझने के लिए छह वेदांगो की रचना हुई ये है - शिक्षा, ज्योतिष, कल्प, व्याकरण, निरुक्त तथा छंद
भारतीय ऐतिहासिक कथाओ का सबसे अच्छा क्रमबध्द विवरण पुराणों में मिलता है इसके रचयिता लोमहर्ष अथवा इनके पुत्र उग्रश्रवा माने जाते है इनकी संख्या 18 है, जिनमे से केवल पांच - मत्स्य, वायु, विष्णु, ब्राम्हण एवं भगवत में ही राजाओ की वंशावली पायी जाती है
नोट - पुराणों में मत्स्य पुराण सरल संस्कृत श्कोक में लिखे गये है स्त्रियाँ तथा शूद्र जिन्हें वेद पढने की अनुमति नही थी, वे भी पुराण सुन सकते थे पुराणों का पाठ पुजारी मंदिरों में किया करते थे
स्त्री की सर्वाधिक गिरी हुई स्थिति मैत्रेयनी संहिता से प्राप्त होती है जिसमे जुआ और शराब की भांति स्त्री को पुरुष का तीसरा मुख्य दोष बताया गया है
शतपथ ब्राम्हण में स्त्री को पुरुष का अर्धांगिनी कहा गया है
स्मृतिग्रंथो में सबसे प्राचीन एवं प्रमाणिक मनुस्मृति मानी जाती है यह शुंग काल का मानक ग्रंथ है नारद स्मृति गुप्त युग के विषय में जानकारी प्रदान करता है
जातक में बुध्द की पूर्वजन्म की कहानी वर्णित है हीनयान का प्रमुख ग्रंथ 'कथावस्तु' है, जिसमे महात्मा बुध्द का जीवन - चरित अनेक कथानको के साथ वर्णित है
जैन साहित्य को आगम कहा जाता है जैन धर्म का प्रारंभिक इतिहास 'कल्पसूत्र' से ज्ञात होता है जैन ग्रंथ भगवती सूत्र में महावीर के जीवन - कृत्यों तथा अन्य समकलिको के साथ उनके संबंधो का विवरण मिलता है
अर्थशास्त्र के लेखक चाणक्य ( कोटिल्य या विष्णु गुप्त ) है यह 15 अधिकरणों एवं 180 प्रकरणों में विभाजित है इसमें मौर्यकालीन इतिहास की जानकारी प्राप्त होती है
संस्कृत साहित्य में ऐतिहासिक घटनाओ को क्रमबध्द लिखने का सर्वप्रथम प्रयास कल्हण के व्दारा किया गया कल्हण व्दारा रचित पुस्तक राजतरंगिनी है, जिसका संबंध कश्मीर के इतिहास से है
अरबो की सिंध - विजय का व्रतांत चचनामा (लेखक - अली अहमद ) में सुरक्षित है
'अष्टाध्यायी ' ( संस्कृत भाषा व्याकरण की प्रथम पुस्तक ) के लेखक पाणिनि है इससे मौर्य के पहले का इतिहास तथा मौर्ययुगीन राजनीतिक अवस्था की जानकारी प्राप्त होती है
कत्यायन की गार्गी - संहिता एक ज्योतिष ग्रंथ है, फिर भी इसमें भारत पर होने वाले यवन आक्रमण का उल्लेख मिलता है पतंजलि शुंग के पुरोहित थे, इनके महाभाष्य से शुंगो के इतिहास का पता चलता है
विदेशी यात्रियों से मिलनेवाली प्रमुख जानकारी
A. यूनानी - रोमन लेखक
1. टेसियस : यह ईरान का राजवैध्य था भारत के संबंध में इसका विवरण आश्चर्यजनक कहानियों से परिपूर्ण होने के कारण अविश्वसनीय है
2. हेरोडोटस : इसे 'इतिहास का पिता" कहा जाता है इसने अपनी पुस्तक हिस्टोरिका में 5वी शताब्दी ईसा पूर्व के भारत - फारस (ईरान ) के संबंध का वर्णन किया है परन्तु इसका विवरण भी अनुश्रुतियो एवं अफवाहो पर आधारित है
3. सिकंदर के साथ आनेवाले लेखको में निर्याकस, आनेसिक्रिट्स तथा आस्टोबुलस के विवरण अधिक प्रमाणिक एवं विश्वसनीय है
4. मेगास्थनीज : यह सेल्यूकस निकेटर का राजदूत था, जो चन्द्रगुप्त मौर्य के राजदरबार में आया था इसने अपनी पुस्तक इण्डिका में मौर्य युगीन समाज एवं संस्कृति के विषय में लिखा है
5. डाइमेकस : यह सीरियन नरेश आन्तियोकस का राजदूत था, जो बिन्दुसार के राजदरबार में आया था इसका विवरण भी मौर्य युग से संबंधित है
6.डायोनिसीयस : यह मिश्र नरेश टॉलमी फिलेडेल्फस का राजदूत था, जो अशोक के दरबार में आया था
7. टॉलमी : इसने दूसरी शताब्दी में ' भारत का भूगोल ' नामक पुस्तक लिखी
8. प्लिनी : इसने प्रथम शताब्दी में नेचुरल हिस्ट्री ' नामक पुस्तक लिखी इसमें भारतीय पशुओ, पेड़ - पौधो, खनिज - पदार्थो आदि के बारे में विवरण मिलता है
9. पेरीप्लस ऑफ़ द इरिथ्रयन - सी : इस पुस्तक के लेखक के बारे में जानकारी नही है यह लेखक करीब 80 ई. में हिन्द महासागर की यात्रा पर आया था इसने उस समय के भारत के बन्दरगाहो तथा व्यापारिक वस्तुओ के बारे में जानकारी दी है
B. चीनी लेखक
1. फाहियान : यह चीनी यात्री गुप्त नरेश चन्द्रगुप्त व्दितीय के दरबार में आया था इसने अपने विवरण में मध्यप्रदेश के समाज एवं संस्कृति के बारे में वर्णन किया है इसने मध्यप्रदेश की जनता को सुखी एवं सम्रध्द बताया है यह 14 वर्षो तक भारत में रहा
2. संयुगन : यह 518 ई. में भारत आया इसने अपने तीन वर्षो की यात्रा में बौध्द धर्म की प्राप्तियाँ एकत्रित की
3.ह्रेनसांग : यह हर्षवर्धन के शासनकाल में भारत आया था ह्रेनसांग 629 ई. में चीन से भारतवर्ष के लिए प्रस्थान किया और लगभग एक वर्ष की यात्रा के बाद सर्वप्रथम वह भारतीय राज्य कपिशा पहुंचा भारत में 15 वर्षो तक ठहरकर 645 ई. में चीन लौट गया वह बिहार में नालंदा जिला स्थित नालंदा विश्वविद्यालय में अध्ययन करने तथा भारत से बौध्द ग्रंथो को एकत्र कर ले जाने के लिए आया था इसका भ्रमण व्रतांत सि - यू - की नाम से प्रसिध्द है, जिसमे 138 देशो का विवरण मिलता है इसने हर्षकालीन समाज, धर्म तथा राजनीति के बारे में वर्णन किया है इसके अनुशार सिन्ध का राजा शूद्र था ह्रेनसांग ने बुध्द की प्रतिमा के साथ - साथ सूर्य और शिव की प्रतिमाओ का भी पूजन किया था
नोट - ह्रेनसांग के अध्ययन के समय नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य शीलभद्र थे यह विश्वविद्यालय बौध्द दर्शन के लिए प्रसिद्ध था
4.इत्सिंग : यह 7वी शताब्दी के अंत में भारत आया इसने अपने विवरण में नालंदा विश्वविद्यालय तथा अपने समय के भारत का वर्णन किया है
C. अरबी लेखक
1. अलबरूनी : यह महबूब गजनवी के साथ भारत आया था अरबी में लिखी गई उसकी कृति 'किताब-उल-हिन्द' या तहकीक-ए-हिन्द (भारत की खोज )',आज भी इतिहासकारों के लिए एक महत्वपूर्ण स्त्रोत है यह एक विस्तृत ग्रंथ है जो धर्म और दर्शन, त्यौहारो, खगोल विज्ञान आदि विषयों के आधार पर अस्सी अध्यायों में विभाजित है इसमें राजदूत - कालीन समाज, धर्म, रीति - रिवाज, राजनीति आदि पर सुंदर प्रकाश डाला गया है
2. इब्न बतूता : इसके व्दारा अरबी भाषा में लिखा गया उसका यात्रा - व्रतांत जिसे रिह्रला कहा गया जाता है, 14 वी शताब्दी में भारतीय उपमहव्दीप के सामाजिक तथा सांस्कृतिक जीवन के विषय में बहुत ही प्रचुर तथा सबसे रोचक जानकारियाँ देता है 1333 ई. मर दिल्ली पहुँचने पर इसकी विव्दता से प्रभावित होकर सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक ने उसे दिल्ली का काजी या न्यायधीश नियुक्त किया
D. अन्य लेखक
1. तारानाथ : यह एक तिब्बती लेखक था इसने 'कंग्युर' तथा 'तंग्युर' नामक ग्रंथ की रचना की इनसे भारतीय इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है
2. मर्कोपोलो : यह 13वी शताब्दी के अन्त में पाण्ड्य देश की यात्रा पर आया था इसका विवरण पाण्ड्य इतिहास के अध्ययन के लिए उपयोगी है
पुरातत्व संबंधी साक्ष्य से मिलने वाली जानकारी
1400 ईसा पूर्व के अभिलेख 'बेगाज - कोई' (एशिया माइनर) से वैदिक देवता मित्र, वरुण, इंद्र और नासत्य (अश्विनी कुमार) के नाम मिलते है
मध्यभारत में भागवत धर्म विकसित होने का प्रमाण यवन राजदूत 'होलियोड़ोरस' के वेसनगर (विदिशा) गरुड़ स्तम्भ लेख से प्राप्त होता है
सर्वप्रथम 'भारतवर्ष' का जिक्र हाथीगुम्फा अभिलेख में है
सर्वप्रथम दुर्भिक्ष का जानकारी देनेवाला अभिलेख सौहगौरा अभिलेख है इस अभिलेख में संकट काल में उपयोग हेतु खाद्यान सुरक्षित रखने का भी उल्लेख है
सर्वप्रथम भारत पर होनेवाले ह्रूण आक्रमण की जानकारी भीतरी स्तंभ लेख से प्राप्त होती है
सती प्रथा का पहला लिखित साक्ष्य एरण अभिलेख (शासक भानुगुप्त ) से प्राप्त होती है
सातवाहन राजाओ का पूरा इतिहास उनके अभिलेखों के आधार पर लिखा गया है
रेशम बुनकर की श्रेणियों की जानकारी मंदसौर अभिलेख से प्राप्त होती है
कश्मीरी नवपाषाणिक पुरास्थल बुर्जहोम से गर्तावास (गड्डा घर ) का साक्ष्य मिला है इनमे उतरने के लिए सीढिया होती थी
प्राचीनतम सिक्को को आहत सिक्के कहा जाता है, इसी की साहित्य में कशार्पण कहा गया है
सर्वपप्रथम सिक्को पर लेख लिखने का कार्य यवन शासको ने किया
समुद्रगुप्त की वीणा बजाती हुई मुद्रा वाले सिक्के से उसके संगीत - प्रेमी होने का प्रमाण मिलता है
अरिकमेडू (पुदुचेरी के निकट ) से रोमन सिक्के प्राप्त हुए है
उत्तर भारत के मंदिरों की कला की शैली नागर शैली एवं दक्षिण भारत के मंदिरों की कला द्रविड़ शैली कहलाती है दक्षिणापथ के मंदिरों के निर्माण में नागर और द्रविड़ शैलियों का प्रभाव पड़ा, अत: यह वेसर शैली कहलाती है
पंचायत शब्द मंदिर रचना शैली से संबंधित है एक हिन्दू मंदिर तब पंचायत शैली का कहलाता है जब मुख्य मंदिर चार सहायक मंदिरों से घिरा होता है पंचायत मंदिर के उदाहरण है - कंदरिया महादेव मंदिर (खजुराहो ), ब्रम्हेश्वर मंदिर (भुवनेश्वर ), लक्ष्मण मंदिर (खजुराहो), लिंगराज मंदिर (भुवनेश्वर), दशावतार मंदिर (देवगढ़, उ.प्र. ), गोंडेश्वर मंदिर (महाराष्ट्र )
महत्वपूर्ण अभिलेख | |
अभिलेख | शासक |
हाथी गुफा अभिलेख (तिथि रहित अभिलेख ) | कलिंग राज खारवेल |
जूनागढ़ (गिरनार ) अभिलेख | रूद्रदामन |
नासिक अभिलेख | गौतमी बलश्री |
प्रयाग स्तम्भ लेख | समुद्र गुप्त |
ऐहोल अभिलेख | पुलकेशिन - II |
मंदसौर अभिलेख | मालवा नरेश यशोवर्धन |
ग्वालियर अभिलेख | प्रतिहार नरेश भोज |
भितरी एवं जूनागढ़ अभिलेख | स्कन्दगुप्त |
देवपाड़ा अभिलेख | बंगाल शासक विजयसेन |